garud govind ji



गरुड़ गोविन्द मंदिर


ब्रिज भगवान् श्री कृष्ण की लीला स्थली है। यहाँ भगवान् श्री कृष्ण ने
अनेक रूप धारण कर अनेक विभिन्न लीलाएं की। भगवान् श्री कृष्ण
के वे सभी लीला विग्रह ब्रिज मंडल में विभिन्न स्वरूपों
में आज भी विराजमान हैं।
छटीकरा के पास 'षडंग वन' में विराजमान श्री गरुड़ गोविन्द जी
ब्रिज के ऐसे ही प्राचीनतम श्री विग्रह हैं, जिनकी प्रतिष्ठापना
लगभग ५००० वर्ष पूर्व श्री कृष्ण भगवान् के परपौत्र
'वज्रनाभ जी' ने अपने कुलगुरु 'गर्गाचार्य' के सान्निध्य में की थी।
भगवान् श्री गरुड़ गोविन्द जी यहाँ पौराणिक 'बारह भुजाओ' के
अद्वितीय स्वरूप के साथ श्री गरुड़ जी की पीठ पर विराजमान हैं।
भगवान् का यह स्वरूप संसार में दुर्लभ है। श्री गोविन्द जी के साथ
बाईं तरफ माँ लक्ष्मी जी विराजमान हैं।
ठाकुर श्री गरुड़ गोविन्द जी के दर्शन परम मनोहर एवं कल्याणकारी हैं।
गरुड़ गोविन्द जी के दर्शन मात्र से भक्तो को मनोवांछित फल की प्राप्ति
हो जाती है।
श्री गरुड़ गोविन्द जी की सन्निधि से पावन ब्रिज का यह पवित्र एवं
प्राचीन तीर्थ स्थल 'काल सर्प योग अनुष्ठान' हेतु विश्व प्रसिद्द है।
ठाकुरजी के दर्शन मात्र से 'काल सर्प दोष' जनित प्रभाव विनष्ट हो
जाता है।
श्री गरुड़ गोविन्द जी का उल्लेख अनेक प्राचीन ग्रंथो-
'गरुड़ पुराण', 'गर्ग संहिता', 'भक्त माल', आदि में प्राप्त होता है।



गरुड़ गोविन्द स्वरूप



प्राचीन काल में, सतयुग में एक महाभयंकर, अतुलित बलशाली
दैत्य 'महिशाशुर' हुआ था। उसने तीनो लोकों में भयंकर उत्पात
फैलाया। उसने अपनी आसुरी शक्तियों का प्रयोग कर तीनो लोकों पर
अधिकार कर लिया। देव गण स्वर्ग लोक से भागकर परम
पिता ब्रह्माजी की शरण में पहुंचे तथा उनसे महिशाशुर के वध का
उपाय पूछा। ब्रह्माजी ने देवताओं को कैलाश पर्वत पर माँ भगवती उमा
की शरण में जाने को कहा। देवताओ ने कैलाश पहुंच कर माँ भगवती
उमा की बड़ी सुन्दर स्तुति की तथा अपने आने का प्रयोजन उन्हें बताया।
तब माँ ने उन्हें महिशाशुर के वध करने का आश्वासन दिया।
महिशाशुर के वध हेतु माँ भगवती ने 'कात्यायनी' अवतार लिया।
महिषासुर परम शक्तिशाली था इसलिए माँ कात्यायनी ने शक्तिया
प्राप्त करने हेतु भगवन 'श्री विष्णु' की कठिन आराधना की।
भगवान् श्री विष्णु प्रकट हुए तब माँ कात्यायनी ने
उनकी बड़ी सुन्दर स्तुति करते हुए वरदान माँगा की-
' हे गोविन्द! आप गरुड़ जी पर सवार होकर दस विभिन्न
दिशाओं में दस विभिन्न आयुध लेकर मेरी रक्षा करें,
एक भुजा 'संसार' रूप में मेरी रक्षार्थ धारण करें'।
तब भगवान् श्री विष्णु ने माँ कात्यायनी को 'गरुड़ गोविन्द जी' सवरूप में
दर्शन देकर शक्तियां प्रदान की तथा माँ कात्यायनी ने महिशाशुर का वध किया।
ठाकुर श्री गोविन्द जी माँ कात्यायनी को दिए वरदान के अनुसार दस
विभिन्न भुजाओं में दस विभिन्न आयुध धारण किये हुए हैं तथा
एक भुजा 'रक्षार्थ' वरद मुद्रा में है और एक अन्य भुजा से गरुड़ जी को
पकडे हुए हैं।
गरुड़ पुराण में इस कथा का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।
माँ कात्यायनी ने भगवान् श्री विष्णु की जो स्तुति की वह
" श्री विष्णु पञ्जर स्तोत्र " नाम से प्रसिद्द है। यह स्तोत्र परम
कल्याणकारी है।



त्रेता युग में भगवान् श्री राम ने बारह भुजा का यह स्वरूप,
बारह महीनो के बारह सूर्यों, के श्रेष्ठता सम्बन्धी अभिमान
को मिटाने के लिए उनके द्वारा दी गयीं विभिन्न भेटों को एक
साथ लेने के लिए धारण किया था।



द्वापर युग में भगवान् श्री कृष्ण ने रास लीला के समय, रास
लीला का दर्शन करने आये गरुड़ जी की विशेष प्रार्थना पर
'बारह भुजा' का स्वरूप धारण कर गरुड़ जी को दर्शन दिए।


।। जय गोविन्द ।।


दर्शन का समय



मंदिर का पता और मानचित्र (स्थान का विवरण)


गरुड़ गोविन्द   मन्दिर                                                                     दूरभाष :

                                                                                   +91-9897005444, +91-9897009111,
छटीकरा, वृन्दावन,                                                     +91- 9808618685, +91- 9528953414.
जिला
मथुरा,                                                                                                                                                                      
उत्तर प्रदेश-भारत

Lord Garud Govind temple is situated on National Highway no.2 in Chhatikara village.

This temple is at a middle point of Vrindavan, Goverdhan and Mathura.

Map



     

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